*चारो ओर खुशी और उल्लास फिर मन उदास है, एक झलक पाने को मन है बेताब.. संजय पाठक
*जिन से संसार रोशन हुआ आज वही दिप हमारे बीच नही*
विजयराघवगढ़ विधायक संजय सत्येंद्र पाठक के जन्मदिन को लेकर आज कटनी जिले मे ही नही अगल अगल प्रदेशों मे खुशियां देखी जा रही है सहयोगी मित्र अपने स्नेह प्रेम को अलग अलग तरीके से व्यक्त करना चाहते हैं। नगर से महानगरों तक बैनरों के माध्यम से आने वाले 31 अक्टूबर को जन्मदिन की खुशी मे पूर्व से ही बैनर पोस्टर से नगर व महानगर ढक दिए गये कटनी दुल्हन जैसा दिख रहा है । हर्ष की बात तो यह है की इस वर्ष दिपावली के दिन ही संजय सत्येंद्र पाठक का जन्म बनाया जाएगा लक्ष्मी पुत्र कहे जाने वाले का जन्मदिन लक्ष्मी पूजन के ही दिन यह बडा सैयोग माना जा रहा है। किन्तु इन सभी खुशी के बीच पाठक परिवार के मुखिया जिनसे सारा घर परिवार कुल रोशन होता रहा आज वह दिप बुझ जाने का अफसोस एक दर्द पुत्र के दिल मे हमेशा बना रहेगा वह भी जो पुत्र माता-पिता का भक्त हो समर्पित रहने वाले पुत्र के जीवन मे लाखो खुशिया आए लाखो उत्साह मनाए जाए किन्तु दिल मे एक कसिस बनी ही रहती है। पं सत्येंद्र पाठक जी तो वह कर्मयोगी पुरुष थे जिनकी तारिफ दुशमन भी करते हैं जिनके जीवन सैली की आज कहानियां सुनाई जाती है जिनके कार्यो की तुलना मे न कोई है न होगा जिनके नाम की पताखा देश दुनिया मे फहरा रही हो ऎसे व्यक्ति के परिवार के सदस्यों का हाल क्या होगा यह सोच से परे है। जिस घर मे आज संजय पाठक यस पाठक जैसे दिप जगमगा रहे है अपनी रोशनी से दुनिया को रोशन कर रहे है आज उन्हे रोशन करने वाले ही नही यह कितना दर्द नाक है जिन हाथो ने कभी कान खिच कर स्कूल की राह दिखाई जिन होथो की उगली पकड कर जीवन मे खडा होना सिखा हो जिन हाथो से रोटी का निवाला खिलाया गया हो आज वही हाथ दूर हो गया। संजय पाठक कितने ही बडे उद्योगपति या समाज सेवक क्यो न बन जाए किन्तु यह बिचार जरूर आता होगा की हम कब आएगे घर और कब जाएगे एक चिंता करने वाले हमे डरा कर हमे समझाने वाले बाबू जी जिनका डर हमेशा मन मे बना रहता था अगर हम समय पर न पहुचे या उन्हें फोन न किए तो डाट पडेगी। मा को समझाना मनाना बहुत आसान होता है किन्तु पिता को नही पिता हमे कितना भी स्नेह प्रेम करे किन्तु एक डर और मर्यादा हमेशा रहती है। पिता की जीत तभी होती है जब अपने पुत्र से हार वह खुश होता है पं सत्येंद्र पाठक जी को यह खुशी ईश्वर ने दी पुत्र ने पिता से मिली विरासत को संभाला और उसे एक मुकाम तक पहुचाया। संजय पाठक इस मुकाम तक पहुच कर अपनी नही बल्कि पिता की यादो का ध्वज फहराया है। काबिलियत की अनोखी तस्वीर संजय पाठक के जीवन मे दिखाई दी किन्तु इस सब के पिछे मां का स्नेह प्रेम आशिर्वाद है जिनकी बदौलत पं सत्येंद्र पाठक जी ने बच्चों को संस्कार दिए आज पुत्र की सिडी बनी मां का जिनकी आखे आसूओ से सुख चुकी है जिनकी आखे रोना तो चाहती है किन्तु बच्चों की खुशी के लिए हस्ती रहती है। निगाहों देखना तो बाबू जी को चाहती है किन्तु समय के साथ दिखाई बच्चे देते है। मन मे बसा कर बाबू जी की मूर्ति खुशियों मे सामिल होती है बच्चों की आरती लेती है दुआएं देती है इस त्याग बलिदान का कोई नाम नही एक जीवन साथी की जिसने हर पग मे साथ दिया उनकी यादो को आज धुमिल करना पडता है इन बच्चों कै लिए इनकी खुशी के लिए तभी तो मा का दर्जा सबसे उपर होता है ईश्वर भी इनके चरणों मे नतमस्तक होते हैं। जन्मदिन की शुभकामनाएं बधाई विधायक संजय सत्येंद्र पाठक जी बडे भाई।