*कृष्ण जन्मोत्सव पर भक्तो ने मनाई खुशी, लड्डू गोपाल को सर पर रख थिरकते रहे भक्त*
वेदान्ती जी की कथा से आकर्षित हो भारी तादाद मे पहुच रहे श्रद्धालु*
विजयराघवगढ़ सार्वजनिक साप्ताहिक श्रीमद् भागवत कथा मे आज कृष्ण जन्म को लेकर कथा व्यास वशिष्ठपीठा ईश्वर ब्रम्हर्षि वेदान्ती जी महाराज ने कथा श्रवण कराई ।वेदान्ती जी की मधुर आवाज के साथ साथ अलौकिक शक्तिया विद्यमान है वेदान्ती जी की कथा सुन कर आकर्षित हो रहे भक्त जिसके फलस्वरूप भारी मात्रा मे जन सैलाब एकत्र हो रहा कथा स्थल संकट मोचन आश्रम परिसर भक्तो से खचा खच भरा रहा। कथा व्यास जी बताया की भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था। रास्ते में आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।’ यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ।तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है। कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया। वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था।उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी। जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं।तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए।अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है।उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा। व्यासजी की कथा के अनुसार श्रीकृष्ण बाल स्वरूप व नन्द बाबा को तैयार कर सुन्दर झाकी सजाई गयी कथा उपरांत कृष्ण जन्म होते ही नन्दबाबा सर पर टोकनी लिए कृष्ण कन्हैया को लेकर जैसे ही कथा स्थल पहुचे भक्तो का उत्साह देखने योग्य रहा भक्त झुमने गाने लगे कृष्ण कन्हैया की जय जय कार के साथ समूचा संकट मोचन परिसर गुंजमान हुआ। श्रीमद् भागवत कथा के संयोजक डा राघवेश दास जी विमलेन्द्र प्यासी जी विपिन सोनी आदी ने कथा स्थल को पुषपो व गुब्बारो से सजावट कराई थी जगह जगह टाफी आदी की वर्षा कराई गयी प्रसाद मे गुड के लड्डू व फलो का प्रसाद वितरण कराया गया। जन्मोत्सव उपरांत सभी भक्तो ने कथा व्यास जी महाराज व डाक्टर राघवेश दास जी के साथ भव्यता पूर्ण आरती की। कल कथा व्यास वशिष्ठपीठा ईश्वर ब्रम्हर्षि वेदान्ती जी के मुखारविंद से श्रीकृष्ण जी की लीला का वर्णन किया जाएगा। जिनकी लिला सबसे अद्भुत और मनोरंजक है।