जाति बदल कर मंदिर के लुटेरे जमीन बेच रहे, पुजारी को बचाने वाले माता के साथ कर रहे पाप*
*मंदिर और मंदिर से जुड़ी सम्पत्ति की सुरक्षा नगर का भी दाईतव सपेरों का साम्राज्य होगा नष्ट*
विजयराघवगढ़ नदीपार मे स्थित श्री जगतजननी शारदा देवी मंदिर की स्थापना विजयराघवगढ़ रियासत की स्थापना के साथ सन 1826 में राजा प्रयागदास द्वारा की गई थी मा शारदा की स्थापना दो जगहो पर होना त्य हुआ था मैहर और विजयराघवगढ़ मैहर मे छोटी बहन व विजयराघवगढ़ मे बडी बहन की स्थापना हुई थी किन्तु राजा की मनमर्जी से नाराज बृम्हदेव ने विजयराघवगढ़ राजा को श्रापित कर दिया था जिससे मा शारदा का मंदिर विलुप्त हो गया था कुछ समय बाद जब श्राप मुक्त हुआ तो माता ने मैहर पूजारी को स्वप्न देकर स्थापना के लिए बुलाया था क्यो की विजयराघवगढ़ मंदिर के लिए पुजारी नही रखा गया था सिर्फ सुरक्षा के लिए सपेरा जाती के नागों को इसकी बागडोर सौपी गयी थी आज यही सपेरा जाती के लोग बृम्हण का रुप बदल कर पंडा बने हुए है जबकि इतिहास गवाह है ऎसे लोगों के पैर छुना भी पाप माना गया है सपेरा और नागा जो मंदिर के पुजारी भी नही है वह क्या माता को मानेगे और क्यो धार्मिक स्थल की हिफाजत करेगे आज यही बजह है की शारदा मंदिर की जमीन यह बेच रहे है । जैसी की परंपरा रही है की मंदिर के निर्माण के साथ मंदिर की देख रहे के लिए राजा रजवाड़ाओ द्वारा कुछ कृषि भूमि भी दान में दी जाती थी । इसी तरह उक्त भूमि राजा प्रयाग दास द्वारा मंदिर संचालन मंदिर की देखभाल के लिए दान दी गई थी । जिस तरह धार्मिक भूमि को बेचा जा रहा है ऎसा लगता है की इनके बाप दादाओ की जागीर थी जबकि यह भूमि मंदिर सेवा के साथ जुडी हैं जोभी सेवा करेगा वह इस भूमि से अनाज उगाकर अपना भारण पोषण करेगा। कानून के अनुसार उक्त भूमि का यदि किसी व्यक्ति द्वारा विक्रय या दुरुपयोग किया जाता है तो यह न केवल अमानत में खयानत का अपराध है बल्कि ऐतिहासिक शारदा मंदिर एवं विजयराघवगढ़ के हितों के विरुद्ध घिनौना कुठाराघात है। ऐसे तत्वों को तत्काल मंदिर से निष्काशित और बेदखल कर कानून के कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए ।
*इतिहास को झाके*
मंदिर की सुरक्षा करने के लिए चौकिदार की तरह नागा जाती के सफेरो को रखा गया था जो आज बृम्हण रुप पर स्थापित है इनके पूर्वज भी सपेरे थे इनके पास जमीन बहुत दूर की बात छोटी सी छत भी नही थी फिर यह जमीन पर मालिकाना हक जताने वाले बताए की इन्हे लगभग दो सौ एकड भूमि कहा से मिली फिर इन्होने जाती परिवर्तन क्यो किया माता की सुरक्षा करते करते यह पंडा क्यो बने यह भूमि व्यक्तिगत नाम पर कैसे आई बताया जाता है की नागा परिवार का एक व्यक्ति अधिवक्ता है जिसके नाम पर मंदिर की आधी से जादा भूमी दर्ज करा दी गयी वही से मंदिर के साथ पाप का खेल प्रारंभ हुआ।
*मंदिर के नाम पर पाप का पिटारा खोलने वालो के खिलाफ नगर*
अति का अंत होता है यह कडवा सच है नागा जाती के लोगों ने मंदिर और धर्म के साथ पापो का अंत कर दिया है सपेरों के इस पिटारे को अब नगर एक जुट होकर नष्ट करेगा नगर मे विरोध की चिंगारी अब पंडा के अहंकार के साथ साथ पापो को नष्ट करने की पूरी तैयारी मे है। मा शारदा मंदिर ट्रस्ट बनाया गया किन्तु सदस्य एक ही परिवार को जोड दिया गया है। प्रशासन को गम्भीरता रखते हुए मा शारदा मंदिर को ट्रस्ट बनाते हुए प्रत्येक भूमि व सम्पत्ति का व्योरा नगर की जानकारी मे रख माता की सेवा का कार्य प्रारंभ करना चाहिए।
*प्लाटिंग की भूमि पर शासकीय मेला लगता रहा*
आज जिस भूमि पर प्लाटिंग कर विक्रय किया जा रहा है वह भूमि पर आज सदियों से शासकीय मेला प्रति वर्ष आयोजित होता रहा है नगर परिषद द्वारा इस भूमि पर शासन द्वारा सामुदायिक भवन का भी निर्माण शासकीय भूमि पर बनाया गया था अचानक यह भूमि व्यक्तिगत रुप कैसे धारण कर ली। भूमि खरिदारो ने यह भूमि किस मत से लिए इनके आय का श्रोत क्या है जब यह व्यापारी शासन को किसी भी तरह का टेक्स अदा नही करते फिर इनके पास इतनी राशि आई कहा से इन सभी विंदूओ पर जाच तो प्रशासन को करनी पडेगी अच्छे से या फिर विरोध के उपरांत। विकास श्रीवास्तव